वीर तुम बढ़े चलो धीर तुम बढ़े चलो | veer tum badhe chalo hindi kavita

veer tum badhe chalo के रचइता द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी का जन्म 01 दिसम्बर 1916 को ग्राम रोहता, आगरा, उत्तर प्रदेश में हुआ था। ये शिक्षा के क्षेत्र में बिभिन्न सेवाएं दी, Dwarika Prasad Maheshwari का साहित्य सृजन मुख्यतः सेवनिबृत्त होने के बाद सुरु हुआ। इन्हे बाल साहित्य में महारथ हासिल थी उन्होंने बच्चो के लिए अनेक रचनाओं का निर्माण किया जो आज बच्चो की जुबान पर है और उनकी रचनाओं को बच्चो के पाठ्यक्रम में भी शामिल किया गया है।

hindi hain hum आज द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी जी की एक बहुत ही प्रसिद्ध रचना “वीर तुम बढे चलो” लेकर आया है, उम्मीद है आपको बेहद पसंद आएगी और आप इसे पढ़ेंगे और अपने बच्चों को भी जरूर पढ़ाएंगे जिससे उनके जीवन में चेतना का संचार हो सके.

 


veer tum badhe chalo Hindi Kavita

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वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!

हाथ में ध्वजा रहे बाल दल सजा रहे
ध्वज कभी झुके नहीं दल कभी रुके नहीं
वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!

सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो
तुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहीं
वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!

प्रात हो कि रात हो संग हो न साथ हो
सूर्य से बढ़े चलो चन्द्र से बढ़े चलो
वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!

एक ध्वज लिये हुए एक प्रण किये हुए
मातृ भूमि के लिये पितृ भूमि के लिये
वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!

अन्न भूमि में भरा वारि भूमि में भरा
यत्न कर निकाल लो रत्न भर निकाल लो
वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!

 


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Veer tum badhe chalo! Dheera tum badhe chalo!

Haath main dhvaj rahe baal dal saja rahe
dhvaj kabhi jhuke nahin dal kabhi ruke nahin
veer tum badhe chalo! Dheer tum badhe chalo!

Samne pahadh ho singh ki dahad ho
tum nidar daro nahin tum nidar dato vahin
vir tum badhe chalo! Dheer tum badhe chalo!

Prat ho ki rat ho sang ho na sath ho
sury se badhe chal chandr se badhe chalo
vir tum badhe chalo! Dheer tum badhe chalo!

Ek dhvaj liye hue ek pran kiye hue
matr bhūmi ke liye pitr bhumi ke liye
veer tum badhe chalo! Dheer tum badhe chalo!

Ann bhumi main bhra vaari bhumi main bhara
yatn kar nikal lo ratn bhar nikal lo
vir tum badhe chalo! Dheer tum badhe chalo!

 


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