mahadevi verma poem के जरिए करोड़ों दिलो पर राज करने वाली हिन्दी की सर्वाधिक प्रतिभावान कवयित्रियों में से एक महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च 1907 को हुआ था। Mahadevi Varma हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तम्भों में से एक थीं।वे आधुनिक हिन्दी की सबसे बड़ी कवयित्रि होने के कारण लोग उन्हें आधुनिक मीरा के नाम से भी बुलाते है।
महाकवि कवि निराला ने तो महादेवी वर्मा को “हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती” से भी सम्बोधित किया है। महादेवी ने गुलाम भारत भी देखा और व्यापक समाज में काम करते हुए सामाजसुधार के अनेक कार्य किये और महिलाओं के प्रति चेतना भावना भी जागृत की।
आज हिंदी हैं हम आपके लिए लाया है mahadevi verma ki kavita, mahadevi verma short poems in hindi और mahadevi verma poem का एक शानदार और दिलको छु लेने वाला महादेवी वर्मा की सबसे बेहतरीन कविताओं का संग्रह जो आपको खूब पसंद आएगा।
mahadevi verma poem
यह मेरा मिटने का अधिकार
वे मुस्काते फूल नही,
जिनको आता है मुरझाना,
वे तारों के दीप नही,
जिनको भाता ह बुझ जाना;
वे नीलम के मेघ नही,
जिनको है घुल जाने की चाह,
वह अनंत रितुराज नही,
जिसने देखि जाने की राह।
वे सूने से नयन नही,
जिनमें बनते आंसू मोती,
वह प्राणों की सेज नही,
जिनमें बेसुध पीड़ा सोती,
ऐसा तेरा लोक वेदना नही,
नही जिसमें अवसाद,
जलना जाना नही,
नही जिसने जाना मिटने का स्वाद।
क्या उम्रों का लोक मिलेगा
तेरी करुणा का उपहार?
रहने दो हे देव!
अरे यह मेरा मिटने का अधिकार।।
mahadevi verma ki kavita
जाग तुझको दूर जाना
चिर सजग आँखें उनींदी,
आज कैसा व्यस्त बाना।
जाग तुझको दूर जाना।।
अचल हिमगिरि के हॄदय में
आज चाहे कम्प हो ले,
या प्रलय के आँसुओं में
मौन अलसित व्योम रो ले,
आज पी आलोक को
ड़ोले तिमिर की घोर छाया,
जाग या विद्युत शिखाओं में
निठुर तूफान बोले,
पर तुझे है नाश पथ पर
चिन्ह अपने छोड़ आना।
जाग तुझको दूर जाना।।
बाँध लेंगे क्या तुझे यह
मोम के बंधन सजीले,
पंथ की बाधा बनेंगे
तितलियों के पर रंगीले,
विश्व का क्रंदन भुला देगी
मधुप की मधुर गुनगुन,
क्या डुबो देंगे तुझे
यह फूल दे दल ओस गीले,
तू न अपनी छाँह को
अपने लिये कारा बनाना।
जाग तुझको दूर जाना।।
वज्र का उर एक छोटे
अश्रु कण में धो गलाया,
दे किसे जीवन-सुधा
दो घूँट मदिरा माँग लाया,
सो गई आँधी मलय की
बात का उपधान ले क्या,
विश्व का अभिशाप क्या
अब नींद बनकर पास आया,
अमरता सुत चाहता क्यों
मृत्यु को उर में बसाना।
जाग तुझको दूर जाना।।
कह न ठंढी साँस में अब
भूल वह जलती कहानी,
आग हो उर में तभी
दृग में सजेगा आज पानी,
हार भी तेरी बनेगी
माननी जय की पताका,
राख क्षणिक पतंग की है
अमर दीपक की निशानी,
है तुझे अंगार-शय्या
पर मृदुल कलियां बिछाना।
जाग तुझको दूर जाना।।
mahadevi verma poems in hindi
जब यह दीप थके तब आना
यह चंचल सपने भोले है,
दृग-जल पर पाले मैने,
मृदु पलकों पर तोले हैं,
दे सौरभ के पंख इन्हें सब नयनों में पहुँचाना!
जब यह दीप थके तब आना।
साधें करुणा-अंक ढली है,
सान्ध्य गगन-सी रंगमयी पर,
पावस की सजला बदली है,
विद्युत के दे चरण इन्हें उर-उर की राह बताना!
जब यह दीप थके तब आना।
यह उड़ते क्षण पुलक-भरे है,
सुधि से सुरभित स्नेह-धुले,
ज्वाला के चुम्बन से निखरे है,
दे तारो के प्राण इन्ही से सूने श्वास बसाना!
जब यह दीप थके तब आना।
यह स्पन्दन है अंक-व्यथा के,
चिर उज्ज्वल अक्षर जीवन की,
बिखरी विस्मृत क्षार-कथा के,
कण का चल इतिहास इन्हीं से लिख-लिख अजर बनाना!
जब यह दीप थके तब आना।
लौ ने वर्ती को जाना है,
वर्ती ने यह स्नेह, स्नेह ने,
रज का अंचल पहचाना है,
चिर बन्धन में बाँध इन्हें धुलने का वर दे जाना!
जब यह दीप थके तब आना।
mahadevi verma kavita
अश्रु यह पानी नहीं है
यह न समझो देव पूजा के सजीले उपकरण ये,
यह न मानो अमरता से माँगने आए शरण ये,
स्वाति को खोजा नहीं है औ’ न सीपी को पुकारा,
मेघ से माँगा न जल, इनको न भाया सिंधु खारा!
शुभ्र मानस से छलक आए तरल ये ज्वाल मोती,
प्राण की निधियाँ अमोलक बेचने का धन नहीं है।
अश्रु यह पानी नहीं है, यह व्यथा चंदन नहीं है।
नमन सागर को नमन विषपान की उज्ज्वल कथा को
देव-दानव पर नहीं समझे कभी मानव प्रथा को,
कब कहा इसने कि इसका गरल कोई अन्य पी ले,
अन्य का विष माँग कहता हे स्वजन तू और जी ले।
यह स्वयं जलता रहा देने अथक आलोक सब को
मनुज की छवि देखने को मृत्यु क्या दर्पण नहीं है।
अश्रु यह पानी नहीं है, यह व्यथा चंदन नहीं है।
शंख कब फूँका शलभ ने फूल झर जाते अबोले,
मौन जलता दीप, धरती ने कभी क्या दान तोले?
खो रहे उच्छ्वास भी कब मर्म गाथा खोलते हैं,
साँस के दो तार ये झंकार के बिन बोलते हैं,
पढ़ सभी पाए जिसे वह वर्ण-अक्षरहीन भाषा
प्राणदानी के लिए वाणी यहाँ बंधन नहीं है।
अश्रु यह पानी नहीं है, यह व्यथा चंदन नहीं है।
किरण सुख की उतरती घिरतीं नहीं दुख की घटाएँ,
तिमिर लहराता न बिखरी इंद्रधनुषों की छटाएँ,
समय ठहरा है शिला-सा क्षण कहाँ उसमें समाते,
निष्पलक लोचन जहाँ सपने कभी आते न जाते,
वह तुम्हारा स्वर्ग अब मेरे लिए परदेश ही है।
क्या वहाँ मेरा पहुँचना आज निर्वासन नहीं है?
अश्रु यह पानी नहीं है, यह व्यथा चंदन नहीं है।
आँसुओं के मौन में बोलो तभी मानूँ तुम्हें मैं,
खिल उठे मुस्कान में परिचय, तभी जानूँ तुम्हें मैं,
साँस में आहट मिले तब आज पहचानूँ तुम्हें मैं,
वेदना यह झेल लो तब आज सम्मानूँ तुम्हें मैं!
आज मंदिर के मुखर घड़ियाल घंटों में न बोलो
अब चुनौती है पुजारी में नमन वंदन नहीं है।
अश्रु यह पानी नहीं है, यह व्यथा चंदन नहीं है।
महादेवी वर्मा की कविता
स्वप्न से किसने जगाया?
मैं सुरभि हूं।
छोड कोमल फूल का घर,
ढूंढती हूं निर्झर।
पूछती हूं नभ धरा से क्या नहीं र्त्रतुराज आया?
स्वप्न से किसने जगाया?
मैं ऋतुओं में न्यारा वसंत,
मैं अग-जग का प्यारा वसंत।
मेरी पगध्वनी सुन जग जागा,
कण-कण ने छवि मधुरस मांगा।
नव जीवन का संगीत बहा,
पुलकों से भर आया दिगंत।
मेरी स्वप्नों की निधि अनंत,
मैं ऋतुओं में न्यारा वसंत।
mahadevi varma ki kavita
अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी?
आँधी आई जोर शोर से,
डालें टूटी हैं झकोर से,
उड़ा घोंसला अंडे फूटे,
किससे दुख की बात कहेगी,
अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी?
हमने खोला आलमारी को,
बुला रहे हैं बेचारी को,
पर वो चीं-चीं कर्राती है,
घर में तो वो नहीं रहेगी!
अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी?
घर में पेड़ कहाँ से लाएँ,
कैसे यह घोंसला बनाएँ,
कैसे फूटे अंडे जोड़े,
किससे यह सब बात कहेगी!
अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी?
mahadevi verma short poems in hindi
धूप सा तन दीप सी मैं
उड़ रहा नित एक सौरभ
धूम-लेखा में बिखर तन,
खो रहा निज को अथक
आलोक सांसों में पिघल मन,
अश्रु से गीला सृजन-पल
औ विसर्जन पुलक-उज्ज्वल,
आ रही अविराम मिट मिट
स्वजन ओर समीप सी मैं।
धूप सा तन दीप सी मैं।।
सघन घन का चल तुरंगम
चक्र झंझा के बनाये,
रश्मि विद्युत ले प्रलय-रथ
पर भले तुम श्रान्त आये,
पंथ में मृदु स्वेद-कण चुन
छांह से भर प्राण उन्मन,
तम-जलधि में नेह का मोती
रचूंगी सीप सी मैं।
धूप-सा तन दीप सी मैं।।
desh bhakti poems in hindi by mahadevi verma
फिर एक बार, बस एक बार
मैं कम्पन हूँ तू करुण राग,
मैं आँसू हूँ तू है विषाद,
मैं मदिरा तू उसका खुमार,
मैं छाया तू उसका अधार,
मेरे भारत मेरे विशाल,
मुझको कह लेने दो उदार ।
फिर एक बार, बस एक बार ।।
कहता है जिसका व्यथित मौन,
हम सा निष्फल है आज कौन,
निर्थन के धन सी हास–रेख,
जिनकी जग ने पायी न देख,
उन सूखे ओठों के विषाद,
में मिल जाने दो है उदार ।
फिर एक बार, बस एक बार ।।
जिन पलकों में तारे अमोल,
आँसू से करते हैं किलोल,
जिन आँखों का नीरव अतीत,
कहता मिटना है मधुर जीत,
उस चिंतित चितवन में विहास,
बन जाने दो मुझको उदार ।
फिर एक बार, बस एक बार ।।
फूलों सी हो पल में मलीन,
तारों सी सूने में विलीन,
ढुलती बूँदों से ले विराग,
दीपक से जलने का सुहाग,
अन्तरतम की छाया समेट,
मैं तुझमें मिट जाऊँ उदार ।
फिर एक बार, बस एक बार ।।
mahadevi verma ki kavita in hindi
कौन तुम मेरे हृदय में?
कौन मेरी कसक में नित,
मधुरता भरता अलक्षित,
कौन प्यासे लोचनों में,
घुमड़ घिर झरता अपरिचित,
स्वर्ण सपनों का चितेरा,
नींद के सूने निलय में,
कौन तुम मेरे हृदय में?
अनुसरण निःश्वास मेरे,
कर रहे किसका निरंतर,
चूमने पदचिन्ह किसके,
लौटते यह श्वास फिर फिर,
कौन बन्दी कर मुझे अब,
बँध गया अपनी विजय में,
कौन तुम मेरे हृदय में?
गूँजता उर में न जाने,
दूर के संगीत सा क्या,
आज खो निज को मुझे,
खोया मिला विपरीत सा क्या,
क्या नहा आयी विरह–निशी,
मिलन–मधु–दिन के उदय में,
कौन तुम मेरे हृदय में?
महादेवी वर्मा का जीवन परिचय
mahadevi verma का जन्म 26 मार्च 1907 को फ़र्रुख़ाबाद उत्तर प्रदेश में हुआ। उनका नाम महादेवी उनके दादा जी ने रखा था क्योकि उनके परिवार में लगभग 200 वर्षों या सात पीढ़ियों के बाद पहली बार पुत्री का जन्म हुआ था अतः इन्हें घर की देवी मानते हुए महादेवी मानते हुए उन्होंने पुत्री का नाम महादेवी रखा।
महादेवी वर्मा की शिक्षा इन्दौर में मिशन स्कूल से प्रारम्भ हुई और साथ ही साथ संस्कृत, अंग्रेज़ी, संगीत की शिक्षा भी उन्हें बचपन से ही दी जाती थी। 1916 में इनका विवाह बरेली के श्री स्वरूप नारायण वर्मा से कर दिया। विवाह की बाधा के कारण कुछ दिन तक इनकी शिक्षा स्थगित रही। लेकिन विवाह के बाद महादेवी जी ने 1919 में क्रास्थवेट कॉलेज इलाहाबाद में प्रवेश लिया और कॉलेज के छात्रावास में रहने लगीं।
महान कवित्री महादेवी जी का जीवन तो एक संन्यासिनी का जीवन था क्योकि उन्होंने जीवन भर श्वेत वस्त्र पहना, तख्त पर सोईं और कभी शीशा नहीं देखा। इनका कार्यक्षेत्र लेखन, सम्पादन और शिक्षक का रहा। उन्होंने इलाहाबाद के प्रयाग महिला विद्यापीठ के विकास में महत्वपूर्ण योगदान किया। तथा वे इसकी प्रधानाचार्य और बाद में चलकर कुलपति भी रहीं।
महादेवी वर्मा की सबसे बेहतरीन कविताओं का संग्रह
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