राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ जी के बारे में जितना लिखा जाये कम ही है। वे भारतीय स्वतंत्रता की क्रान्तिकारी धारा के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे, Ram Prasad Bismil को 30 वर्ष की आयु में फाँसी दे दी गई। वे हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के सदस्य भी थे। Ram Prasad ‘Bismil’ एक कवि, शायर व साहित्यकार भी थे। बिस्मिल उनका उर्दू तखल्लुस (उपनाम) था जिसका हिन्दी में अर्थ होता है आत्मिक रूप से आहत। Ram Prasad Bismil Desh Bhakti Kavita राम और अज्ञात के नाम से लिखते थे।
हिंदी देशभक्ति कविता – मुझे वर दे यही माता रहूं भारत पे दीवाना…
न चाहूँ मान दुनिया में, न चाहूँ स्वर्ग को जाना
मुझे वर दे यही माता रहूँ भारत पे दीवाना
करुँ मैं कौम की सेवा पडे़ चाहे करोड़ों दुख
अगर फ़िर जन्म लूँ आकर तो भारत में ही हो आना
लगा रहे प्रेम हिन्दी में, पढूँ हिन्दी लिखुँ हिन्दी
चलन हिन्दी चलूँ, हिन्दी पहरना, ओढना खाना
भवन में रोशनी मेरे रहे हिन्दी चिरागों की
स्वदेशी ही रहे बाजा, बजाना, राग का गाना
लगें इस देश के ही अर्थ मेरे धर्म, विद्या, धन
करुँ मैं प्राण तक अर्पण यही प्रण सत्य है ठाना
नहीं कुछ गैर-मुमकिन है जो चाहो दिल से “बिस्मिल” तुम
उठा लो देश हाथों पर न समझो अपना बेगाना
Desh Bhakti Shayari- mujhe var de yahi mata rahun bharat pe diwana
na chahun man duniya mein, na chahun swarg ko jana
mujhe var de yahee mata rahun bharat pe deevana
karun main kaum kee seva pade chahe karodon dukh
agar fir janm lun akar to bharat mein hee ho ana
laga rahe prem hindee mein, padhun hindee likhun hindee
chalan hindee chalun, hindee paharana, odhana khana
bhavan mein roshanee mere rahe hindee chiragon kee
svadeshee hee rahe baja, bajana, rag ka gana
lagen is desh ke hee arth mere dharm, vidya, dhan
karun main pran tak arpan yahee pran saty hai thana
nahin kuchh gair-mumakin hai jo chaho dil se “bismil” tum
utha lo desh hathon par na samajho apana begana